परिवार का नया संपत्तिशास्त्र
सीत मिश्रा
योजना आयोग द्वारा गठित एक समिति ने महिला अधिकारों को लेकर एक क्रांतिकारी सिफारिश की है। महिला सशक्तीकरण पर काम कर रही इस समिति का सुझाव है कि विवाह के बाद अर्जित चल-अचल सम्पत्ति पर पति-पत्नी का मालिकाना हक बराबर हो। फिर यह संपत्ति पति-पत्नी में चाहे जिसने खरीदी हो। पारिवारिक जीवन से संबंधित कानून में बदलाव लाने की सिफारिश करते हुए, समिति ने 'राइट टू मैरिटल प्रॉपर्टी एक्ट' बनाने का सुझाव दिया है। इसके तहत तलाक की नौबत आने पर पति-पत्नी के बीच संपत्ति का बँटवारा बराबर-बराबर होगा। समिति की राय में, यह कानून सभी समुदायों पर लागू होना चाहिए।
वैवाहिक जीवन में आर्थिक बराबरी का विचार हर तरह से न्यायसंगत है। जब परिवार पति-पत्नी से बनता है, दोनों मिल कर घर को चलाते हैं, तो परिवार की आर्थिक स्थिति में भी दोनों का बराबर साझा होना चाहिए। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि अधिकांश मामलों में पत्नी घर की देखभाल करती है और पति नौकरी या व्यापार करता है। मूल बात यह है कि परिवार एक भावनात्मक और कानूनी इकाई होने के साथ-साथ एक आर्थिक इकाई भी है। इस इकाई के भीतर समानता नहीं होगी, तो पति-पत्नी के रिश्तों में एक बुनियादी गैरबराबरी आ जाएगी, जिसके रहते वैवाहिक जीवन कभी भी सुखी नहीं हो सकता। परिवार के भीतर पति और पत्नी की अलग-अलग भूमिका को ज्यादा से ज्यादा श्रम विभाजन के रूप में ही स्वीकार किया जा सकता है। इस विभाजन में स्त्री की भूमिका या श्रम को हीन मान कर चलना स्त्री व्यक्तित्व का अवमूल्यन करना है। अगर हमें समाज में किसी तरह की तानाशाही मंजूर नहीं है, तो हमें परिवार को भी ज्यादा से ज्यादा लोकतांत्रिक बनाना होगा। हमें भूलना नहीं चाहिए कि आर्थिक बराबरी किसी भी समतामूलक व्यवस्था की पहली सीढ़ी है।
भारतीय समाज में शादी को जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। यह स्त्री और पुरुष, दोनों के लिए एक नई जिंदगी की शुरुआत होती है। विवाह के बाद वे जीवन भर के लिए एक आत्मीय बंधन में बंध जाते हैं। सात फेरों के साथ ही वे एक-दूसरे के जिंदगी भर के सुख-दुख के साथी बन जाते हैं। यानी हर चीज में बराबरी का दर्जा। लेकिन आय और संपत्ति में गैरबराबरी की स्थिति पत्नी को परिवार के भीतर दोयम दर्जा प्रदान करती है। । । भारतीय संस्कारों के अनुसार, शादी के बाद पति का घर ही स्त्री का घर माना जाता है, लेकिन अकसर यह सिर्फ कहने के लिए होता है। करनी से इसका दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं है। पति जब तक मेहरबान है तब तक वह पत्नी का घर है ,लेकिन स्थिति विपरीत होने पर बड़ी आसानी से महिला को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है – उसे बेघर कर दिया जाता है।
इस असमान स्थिति के कारण विवाह स्त्री के लिए एक कैदखाना बन जाता है। पति चाहे जैसा भी हो, शादी को बचाने की सारी जिम्मेदारी पत्नी पर आ गिरती है। आर्थिक स्वतंत्रता के अभाव में तलाक स्त्री के जीवन की सबसे बड़ी दुर्घटना है। इसलिए विवाह को बचाने के लिए वह सब कुछ सहने को लाचार है। इससे पुरुष की निरंकुशता को बढ़ावा मिलता है। इसे रोकने और स्त्री के व्यक्तित्व को खिलने देने का एक सहज तरीका यह है कि पति की आय और संपत्ति में पत्नी का बराबर का हिस्सा हो। इसी तर्क से पत्नी की संपत्ति में पति की स्वाभाविक साझेदारी हो जाती है। जाहिर है, समानता की यह व्यवस्था तभी कायम हो सकती है जब इसे कानून का दर्जा दे दिया जाए।
लेकिन इतना क्रांतिकारी कानून चुटकियों में नहीं बनाया जा सकेगा। हमारे समाज में कितने ऐसे पुरुष हैं जो अपनी संपत्ति में अपनी पत्नी को बराबर का हिस्सा देना चाहेंगे? हमारे सभी संस्कार विषमता पर आधारित हैं। इन संस्कारों के रहते हुए किन्हीं वजहों से दोनों के बीच तलाक होता है तो कितने पुरुषों का मन संपत्ति का आधा हिस्सा पत्नी को देने के लिए तैयार होगा? जाहिर है, स्त्री-पुरुष संबंधों में इतना मूलभूत परिवर्तन ला पाना एक लंबा और कठिन संघर्ष है। अभी तो हम सिर्फ यह संतोष व्यक्त कर सकते हैं कि चलो, सही दिशा में विचार-विमर्श की शुरुआत तो हो ही गई है।
लेकिन यह कोई असंभव कार्य भी नहीं है। गोवा इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है, जहाँ पुर्चगीज शासन के दौरान बनाया गया यह कानून अभी भी जारी है कि विवाह के पहले और विवाह के बाद अर्जित सारी संपत्ति में पति-पत्नी का समान हिस्सा होगा। आजाद होने के बाद गोवा के कानून सिस्टम में बहुत-से परिवर्तन किए गए हैं, पर विवाह, परिवार आदि से संबंधित कानूनों को छेड़ा नहीं गया है। गोवा में पत्नी की इच्छा के विरुद्ध पति केवल आधी संपत्ति का ही जैसा चाहे उपयोग कर सकता है। वसीयत भी वह अपने हिस्से की संपत्ति का ही लिख सकता है। तलाक के बाद पति की आधी आमदनी पत्नी की हो जाती है। समानता की इसी कानूनी व्यवस्था के चलते गोवा में स्त्री की हैसियत पुरुष के बराबर है। पत्नी-पत्नी के बीच जो समानता गोवा में संभव है, उसे देश के बाकी हिस्सों में संभव क्यों नहीं किया जा सकता?
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