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Thursday, August 22, 2013

सिंगल होना दर्द नहीं


 महिलाओं द्वारा एकल जीवन जीने का निर्णय अब बेचारगी या सुहानभूति का मुद्दा नहीं रहा। अकेले जिंदगी जीना दर्द नहीं है, न सजा। यह महिला का नितांत निजी  मामला है। लेकिन समाज का रवैया बदला नहीं है। उसका नजरिया स्त्रियों के जीवन को नियंत्रित करने का रहा है और अब भी है। दूसरी ओर का सच यह है कि महिलाएँ अब अपनी जिंदगी के फैसले खुद करना चाहती हैं। वे खुद अपना निर्माण कर रही हैं। वे उतनी ही जिम्मेदारियाँ लेना चाहती है जिनका वे संतोषजनक ढंग से निर्वाह कर सकें। नौकरी और करियर के बीच वे पति और बच्चों का सपना नहीं देखतीं। लिहाजा वे शादी जैसे बंधन से मुक्त रह कर जीवन जीना चाहती हैं। अकसर विवाह होने के बाद महिलाएँ पारिवारिक जीवन में कैद होकर रह जाती हैं। आज की बहुत-सी स्त्रियाँ नहीं चाहतीं कि छोटी-बड़ी बातों के लिए उन्हें अपना मन मारना पड़े या किसी प्रकार का समझौता करना पड़े। वैवाहिक जीवन की किच-किच से बचने के लिए वे सिंगल जीवन जीने का रास्ता चुन रही हैं। इसमें गलत क्या है?
             सिंगल औरतों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है। ऐसे हर मामले में कोई मजबूरी या दर्द ही हो, ऐसा नहीं है। दिल्ली के वसंत विहार में रहनेवाली, 30 साल की निकिता अपने माँ-बाप की इकलौती संतान है। उसे शादी के लिए मनमाफिक लड़का नहीं मिला, इसलिए उसने शादी नहीं करने का फैसला किया। मजेदार बात यह है कि निकिता अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए, पूरे  परिवार के विरोध के बाद भी, स्पर्म डोनेशन और सेरोगेसी तकनीकी की मदद से माँ बनने वाली है। यह महज निकिता की ही बात नहीं है, बल्कि ऐसी जाने कितनी लड़कियाँ तमाम तरह के साहसिक निर्णय ले रही हैं।
     भारत में कुल महिलाओं का दस फीसदी हिस्सा सिंगल महिलाओं का है। इस वर्ग में  अविवाहित, विधवा, तलाकशुदा और परित्यक्ता महिलाएँ शामिल हैं। जाहिर है, ऐसे मामलों में कुछ निर्णय स्वतंत्र होते हैं तो कुछ लादे हुए। लेकिन इससे कोई महिला उपहास का पात्र नहीं हो जाती। फिर भी समाज एकल महिलाओं के लिए तंग नजरिया ही रखता है। अफसोस है कि दिनोंदिन उन्नत, आधुनिक और शिक्षित होता हमारा समाज उन्हें स्वतंत्रता के साथ जीवन जीने का अधिकार नहीं दे पाता है। जब भी कोई महिला एकल रहने का साहस करती है तो पूरा समाज, यहाँ तक कि उसका परिवार भी, उसके खिलाफ खड़ा हो जाता है। मेरे ऑफिस में कुछ लड़कियाँ शादी नहीं करना चाहतीं। यह उनका नितांत निजी मामला है, लेकिन उनके पुरुष साथी उन्हें बख्शने के लिए तैयार नहीं हैं। वे बार-बार इशारा करते रहते रहते हैं कि अकेले जिंदगी जीना बेहद कठिन है। उन्हें कौन समझाए कि साथी की जरूरत हो सकती है, लेकिन इसके लिए शादी जरूरी नहीं।
     परिवेश भी सिंगल महिलाओं के लिए अलग मुसीबतें खड़ी करता है। महानगरों में सिंगल महिलाओं के लिए एकाकीपन, असुरक्षा की भावना, मानसिक यातना, बच्चों की परवरिश और अपनों का उपेक्षापूर्ण रवैया यातना पैदा करते हैं। दूसरी ओर, छोटे कस्बों और गांवों में रहने वाली सिंगल महिलाओं को आर्थिक तंगी, सामाजिक आलोचना और परिचितों के शंकालु नजरिए जैसी समस्याओं से दो चार होना पड़ता है।
     नेशनल फोरम फॉर सिंगल वीमेन्स राइट्स ने देश के छह राज्यों में कम आय वाली एकल महिलाओं पर एक सर्वेक्षण कराया था। 2002 की जनगणना में एकल महिलाओं की संख्या करीब चार करोड़ थी। आम तौर पर माना जाता रहा है कि सिंगल महिलाओं में विधवा या बूढ़ी महिलाओं की तादाद अधिक है। लेकिन उपर्युक्त सर्वेक्षण से यह बात सामने आई कि बहुत-सी युवा महिलाएं भी सिंगल रहकर चुनौतीपूर्ण स्थितियों में जीवन गुजारती हैं। सर्वेक्षण के मुताबिक इन महिलाओं को टूटा विवाह, वैधव्य, बीमारी, बच्चों को अकेले पालना, कहीं जाने की जगह न होना, हिंसा, शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न, कम शिक्षा और बेरोजगारी जैसी समस्याओं से जूझना पड़ता है। 
     फोरम की अध्यक्ष जिन्नी श्रीवास्तव के मुताबिक, सरकार को आर्थिक अभाव से ग्रस्त एकल महिलाओं के लिए पर्याप्त बजट का प्रावधान करना चाहिए। सामाजिक सुरक्षा पेंशन में सिंगल महिलाओं को शामिल कर उनकी दिक्कतों को कुछ हद तक कम किया जा सकता है। अमूमन तलाकशुदा और परित्यक्त महिलाओं की सामाजिक सुरक्षा की जरूरतों पर बिलकुल भी ध्यान नहीं दिया जाता। इनके लिए काउंसिलिंग का इंतजाम करना भी जरूरी है, ताकि वे हीनता ग्रंथि का शिकार न हो कर अपनी इच्छा के अनुसार और स्वाभिमान के साथ जीवन बिता सकें।   
     यह सच है कि अकेले रह रहे पुरुष भी कई तरह की कठिनाइयों से जूझते हैं। लेकिन महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों की मुसीबतें कम होती हैं। बेशक अकेली रह रही महिलाओं को, पुरुषों की अपेक्षा, सुहानुभूति जल्दी मिल जाती है, लेकिन अकसर महिलाओं के साथ सुहानुभूति दिखाने के पीछे असली मकसद उनका शोषण करने का होता है। कोई औरत अकेली रहती है, इसका मतलब यह लगाया जाता है कि वह सहज ही उपलब्ध है। जरूरत यह है कि सिंगल महिलाओं के प्रति समाज अपना नजरिया बदले और उन्हें अपनी पसंद का जीवन जीने दे।

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