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Monday, May 22, 2017

कविता



एक लड़की है
जिसके दुःख
नाज़ुक दिल की
बांबियों में
रहते हैं।

जैसे तुम नहीं जानते
तकिये के नीचे रखे
ख़तों में लिखी बातें,
कुछ कुछ वैसे ही
तुम नहीं समझोगे
उन दुःखों को
बातों के हवाले से।

लड़की जानती है
बहुत से किस्से जिनसे
बहला देगी तुम्हें
और तुम बहल जाओगे।

वो प्रेम की बात करेगी
और हँस देगी, फ़िर
उसकी हँसी के आगे
तुम्हें याद नहीं रहेगा कुछ।
तुम बुदबुदाकर कहोगे कुछ
शायद ' आई लव यू'
मग़र तुम जानते हो कि
तुम्हारा प्रेम काफ़ी नहीं है
उसे खुश रखने को।

हो सकता है तुम सोचो
कि लड़की लड़ लेगी
अपने सब दुःखों से
और सारी चुनौतियों को
रौंदेगी नहीं बल्कि
हाथ से उठाकर रख देगी
रास्तों के किनारे खड़े
किसी पेड़ की कोटर में
कि ऐसी लड़कियों से
नहीं दुखाया जाता
किसी का भी दिल।

मग़र मुझे लगता है
मुझे जानना चाहिए
उन सब चोटों के बारे में
जिसके निशान छुपाती है
फूल सी वो लड़की।

उससे प्रेम करना भर
वजह नहीं है मेरे
इस अतिक्रमण की।
मैं महसूसना चाहता हूँ
वो सब, सब, सब
जो बीतती है उस पर।

इसीलिए मैं बढ़ता जाता हूँ
उस मासूम की जानिब
जो छुपाकर रखती है सब ज़ख़्म
अपनी जादूई बातों में।
जैसे जैसे गहराती है रात
मैं उतारता हूँ पट्टी
उसकी एक एक चोट से।
छूकर देखता हूँ,
पूछता हूँ निशानों के बारे में।
आख़िर, वो हार मान जाती है।

फ़िर मैं बढ़ता हूँ
उन बांबियों की तरफ़
जिसमें छुपे बैठे हैं
ऐसे दुःख जो शायद
मुझे पागल कर दें।

मैं लेकर बाँहों में
उस चाँद बदन को,
बांधता हूँ प्रेम के
मजबूत संबोधनों में
और मसल देता हूँ
निकालकर कुछ दुःख
उसके दिल की बांबियों से।

वो लड़की कुछ नहीं कहती,
आँसुओं की एक लकीर
गिरती है उसकी आँखों से
और वो जकड़ लेती है मुझे,
जैसे जाने ही नहीं देगी,
न मुझे न चाँद को न इस रात को।

देर रात के उस पहर
ठीक उसी पल
हम होते हैं इतने क़रीब
कि यकीन सा आने लगता है
ज़रूर बनी होंगी
हम दोनों की आत्मायें
एक ही मिट्टी से,
मैं चोर नज़र से देखता हूँ
लड़की की पीठ पर
घुपे हुए हैं कितने ख़ंजर
रहनुमाओं के नाम के।

और ज़रूरी नहीं कि
तुम समझो मेरी कोई भी बात,
कि मैंने जिस तरह किया है प्रेम
वैसे कोई नहीं करता।
और ये भी कि
तुम जानते ही नहीं
उस लड़की को उस तरह
जैसे मैं जानता हूँ।

आनन्द बाजपेई

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