कैसे बचायें हम खुद को बिखर जाने से।
अब तो डर सा लगता है अपने आशियाने से
छोड़ गये हैं वो उदास हर मौसम को।
हम तो हंस देते थे कल तक जिनके मुस्कराने से।
न जाने कब तक पास रहेंगी ये तन्हाइंयाएक
जिन्दगी का साथ छुट जाने स
शायद महफिल कभी रोशन न हो सके वो हाथ नहीं रहे जो बचाते थे आफताब को बुझ जाने से
बहुत दूर चले गये हैं वो मेरी छुअन से
कैसे मनाऊं अब उन्हें रूठ जाने से।
कैसे बचाये हम खुद को बिखर जाने
से अब तो डर सा लगता है अपने आशियाने से
kya bat hai
ReplyDeleteWaaah
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