सामूहिक बलात्कार कांड के बाद स्वतःस्फूर्त उभरा जनाक्रोश जितना हैरान करता है, उतना ही आश्वस्त भी । बलात्कार औऱ स्त्रियोंके खिलाफ होने वाले अन्य अपराधों से निपटने के लिए कड़े कानूनों की मांग अभी जितने मुखर रूप से उठी है, पहले कभी नहीं उठीथी । यद्यपि हमारे देश में स्त्री के खिलाफ हिंसा के तमाम उदाहरण हमेशा ही मौजूद रहे हैं । राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो केमुताबिक 2011 में बलात्कार के चौबीस हजार दो सौ छह मामले दर्ज हुए। महज दिल्ली में ही पांच सौ बहत्तर दुष्कर्म के मामलेसामने आए। दिल्ली सरकार के आंकड़े बताते हैं कि 2011 में दिल्ली की जिला अदालतों में बलात्कार के कुल साढ़े छह सौ मामलेनिपटाए गए । और उनमें महज एक सौ निन्यानबे को ही दोषी करार दिया जा सका । दुष्कर्म के जघन्य मामले हमेशा से ही सामनेआते रहे हैं, लेकिन अब तक इस तरह के मामलों में कोई आवाज नहीं उठी, कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई । यह छोटी-सी चिनगारी बड़े बदलाव की भूमिका बन सकती है।
अमेरिका की रोजा पार्क्स, ईरान की निदा आगा सोल्तानी, मिस्र की अर्धनग्न लड़की, पाकिस्तान में मलाला यूसुफजई और भारत मेंगैंगरेप की शिकार 23 साल की छात्रा । ये महज नाम भर नहीं हैं, बल्कि हालिया वक्त में दुनिया के कई मुल्कों में व्यवस्था केखिलाफ बदलाव की लहर के नए प्रतीक के रूप में उभरी हस्तियां हैं । दुनिया में ऐसी मामूली चिनगारियों से उपजे बड़े आंदोलनों केइतिहास का एक लंबा सिलसिला है। 1955 में 42 साल की रोजा पार्क्स अमेरिका के मांटगोमरी इलाके में बस में चढ़ीं और श्वेत लोगोंके लिए निर्धारित सीटों को छोड़कर अलग बैठ गईं । रोजा पार्क्स मजदूर थीं, वह कपड़े बनाने की फैक्ट्री में काम करती थीं । बसभर जाने के बाद एक श्वेत व्यक्ति बस में चढ़ा। नियम के मुताबिक, अश्वेतों को श्वेत नागरिक के लिए सीट छोड़नी पड़ती थी,लेकिन पार्क्स ने शांति से सीट छोड़ने से मना कर दिया । पार्क्स गिरफ्तार हुईं और तत्कालीन कानून के मुताबिक उनपर मुकदमाभी चला । लेकिन पार्क्स का सीट न छोड़ना मार्टिन लूथर किंग को हिला गया । और इसके बाद अमेरिका में रंग-भेद खत्म करने कीआंधी चली, जिसने रंग भेद को खत्म ही कर दिया ।
परिवर्तन की नई नायिका निदा आगा सुल्तानी की 2009 में ईरान में चुनाव के बाद में सत्ता विरोधी प्रदर्शनों के दौरान गोली लगने सेमौत हो गई । 26 साल की निदा की मौत की तस्वीरों ने पूरे ईरान को हिला दिया और व्यवस्था-विरोधी आंदोलन मुखर हो उठा ।इसी तरह 2011 में काहिरा में सत्ता विरोधी प्रदर्शन के दौरान सैनिकों की बर्बरता से अर्धनग्न हुई लड़की की तस्वीर और वीडियो नेपूरे मिस्र को आंदोलित कर दिया । महिला अधिकारों के समर्थन में एक नई बयार चली । मलाला यूसुफजई अभी किसी को भूलीनहीं होंगी । स्वात घाटी में 14 साल की मलाला यूसुफजई को तालिबानी विचारों की मुखालफत के कारण गोली मार दी गई। गोलीलगने से वह बुरी तरह घायल हो गई । लेकिन इसके बाद मलाला यूसुफजई के समर्थन में महज पाकिस्तान से ही नहीं, बल्कि पूरीदुनिया से आवाज उठी। कुछ समय पहले शिव सेना प्रमुख बालठाकरे के मौत के बाद शाहीन और रेनू ने फेसबुक पर टिप्पणी की ।शाहीन और रेनू की टिप्पणी को आपत्तिजनक बताते हुए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया । इसके बाद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कोलेकर उठी आवाज और प्रदर्शनों के बाद रेनू और शाहीन की रिहाई हो गई ।
और अब 2012 के अंत में सामूहिक दुष्कर्म के मामले ने आमजन को हिला कर रख दिया । हर जगह प्रदर्शन हुए, इसके लिए किराएकी भीड़ इक्कठा नहीं की गई । इस आक्रोश को जन्म नहीं दिया गया, इसे भड़काया नहीं गया, इसे कुरेदा नहीं गया । लोग किसीयोजना के तहत एकत्र नहीं हुए, बल्कि हर शख्स ने सामूहिक दुष्कर्म से पीड़ित लड़की के दर्द को महसूस किया । इस आंदोलन मेंमहिलाओं और पुरुषों ने बराबरी की हिस्सेदारी की । पानी की बौझारों से आक्रोश की आग को बुझाने की कोशिश की गई ।लाठी-डंडे चलाए गए और उसपर सर्दी का सितम भी जारी रहा। लेकिन आंदोलन में कोई कमी नहीं आई, जोश शिथिल नहीं पड़ा, दृढ़और मजबूत इरादों से लोग डटे रहे। केवल दिल्ली में ही नहीं, बल्कि जगह जगह इसकी धधक को महसूस किया गया । हर आम औरखास इस आंदोलन से जुड़ा । बॉलीवुड सड़कों पर उतर आया, सांसदों और नेताओं ने भी इसकी निंदा की। हर किसी ने अपराधी कोकड़ा दंड देने की मांग की ।
इस आंदोलन को लेकर कई तरह की आशंकाएं भी रहीं । मसलन, ‘यह अभूतपूर्व उमड़ा आक्रोश बिना किसी ठोस नतीजे के तिरोहितन हो जाए, आंदोलन को रचनात्मक दिशा की दरकार है, राजनीतिक वर्ग के प्रबुध्द लोगों को सक्रिय होकर इस आंदोलन को तार्किकपरिणति देनी चाहिए’ । इतना ही नहीं, लोगों का यह भी कहना था कि ‘तात्कालिक भावावेश के कारण लोग गंभीर तर्क वितर्क करनेकी स्थिति में नहीं हैं इसलिए कठोर कानून बनाने की मांग की जा रही है।’ जो भी हो, इसमें क्या शक है कि इस आंदोलन ने पूरेदेश को हिला दिया । हालांकि देशव्यापी जनाक्रोश के दौरान भी देश के विभिन्न हिस्सों से बलात्कार की खबरें आऩे का सिलसिलाबना रहा । फिर भी एक सकारात्मक पहल की उम्मीद लिए देश के बड़े तबके ने एकजुट होकर एक दिशा में सोचते हुए कदम आगेबढ़ाया और तमाम मुश्किलात से रूबरू होते हुए भी डटे रहे ।
विशेषज्ञों की नजर में दुनिया में बदलाव का यह नया ट्रेंड और एक नए तरह की सामाजिक क्रांति है । सामूहिक दुष्कर्म कांड ने लोगोंके गुस्से को वजह दी है, इस वारदात ने कई को रास्ते दिखाए हैं । बदलाव की इस हवा ने एक नई चेतना को जन्म दिया है। लोगखड़े हो रहे हैं, विरोध जता रहे हैं, लोग अपने आस-पास के लिए सचेत हुए हैं । भारत में सड़कों पर हो रहा प्रदर्शन में महिलाओं कीहिस्सेदारी इसी वैश्विक लहर की निशानी है ।
बिना किसी राजनीतिक संयोजन और आह्वान के सड़कों पर उतरा शिक्षित मध्य वर्ग बदलाव के नए आग्रह लेकर आया है । यह वर्गव्यवस्था में सार्थक बदलाव की मांग कर रहा है। उम्मीद करनी चाहिए कि उम्मीदों की लौ का यह आंदोलन महिलाओं कीसुरक्षा के लिए सत्ता, कानून, और समाज की सोच में बदलाव का सूत्रधार बनेगा।