योजना आयोग से जुड़े एक पैनल
ने महिला अधिकारों को लेकर एक क्रांतिकारी सिफारिश की है। महिला सशक्तिकरण पर काम कर
रहे आयोग के पैनल ने सुझाव दिया है कि चल अचल सम्पत्ति पर, पति-पत्नी का मालिकाना हक
बराबर हो। फिर चाहे संपत्ति पति-पत्नी में चाहे जिसने खरीदी हो। सिफारिश करने वाले
पैनल ने फैमली लॉ में बदलाव की सिफारिश करते हए राइट टू मैरिटल प्रॉपर्टी एक्ट बनाने
का सुझाव दिया है। इसके तहत तलाक की नौबत आने
पर पति-पत्नी के बीच संपत्ति का बटवारा बराबर होगा। जब परिवार, पति-पत्नी से बनता है,
दोनों सलाह मशविरा कर घर को चलाते हैं, घर के फैसले लेते हैं तो फिर घर की संपत्ति
में दोनों को भागीदार क्यों ने बनाया जाए?
क्या चल-अचल संपत्ति पर पति-पत्नी का बराबर का हक नहीं होना चाहिए? जायदाद पति ने खरीदी हो या पत्नी ने दोनों को उसमें बराबर का हिस्सेदार नहीं
होना चाहिए? इन्हीं सवालों
को उठाते हुए योजना आयोग के पैनल ने महिला अधिकारों को
लेकर यह मांग की है।
इस मुद्दे पर कई सालों से चर्चा
हो रही है। तलाक के बाद संपत्ति में महिला का अधिकार हमेशा ही नगण्य रहा है। संपत्ति
पर बराबरी का हक न मिलने से महिला कई अधिकारों से वंचित रह जाती है और साथ ही महिला
सशक्तिकरण का वह रुप सामने नहीं आ सका है जिसकी परिकल्पना की गई थी। क्योंकि आर्थिक
समपन्नता के अभाव में निर्भरता और विपन्नता की स्थिति बरकरार रहती है।
भारतीय समाज में शादी को जीवन
का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है, शादी
रीति-रिवाज परम्परा के साथ होती है और इसके साथ ही महिला-पुरुष अटूट बंधन में
बंध जाते हैं। सात फेरों के साथ ही वे एक दूसरे के जिंदगी भर के सुख-दुख के साथी बन
जाते हैं यानि हर चीज में बराबरी का दर्जा। लेकिन संपत्ति में पत्नी का दोयम दर्जा।
इसलिए यह मांग उठी है कि पत्नी को पति की संपत्ति में मिले बराबरी का दर्जा। भारतीय
संस्कारों के अनुसार, शादी के बाद पति का घर ही स्त्री का घर माना जाता है लेकिन यह
सिर्फ कथनीय है इसकी करनी का दूर-दूर तक कोई औचित्य नहीं है। पति जब तक मेहरबान है
तब तक वह पत्नी का घर है लेकिन स्थितियां विपरित होने पर महिला को बेघर कर दिया जाता
है, बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। इसलिए शादी को बचाने की सारी जिम्मेदारी पत्नी
के ऊपर लाद दी जाती है जिसे वह चाहे या न चाहे, ढोना उसकी मजबूरी बन जाती है। क्योंकि
महिला को इस बात का एहसास है कि अब उसके पास विकल्प नहीं है मायके वह वापस लौट नहीं
सकती इसलिए हर हाल में शादी को बचाए रखने की जुगत बनाती है। वहीं पति इस बात का पूरा
फायदा लेने से नहीं चूकता। भारत में, पुरुष प्रधान समाज है। यहां पति-पत्नी के बीच
सलाह मशविरा तो होता है लेकिन आखिरी फैसला पुरुष ही लेता है और पत्नी को उसे स्वीकार
करना पड़ता है। ऐसे में, क्या लड़का लड़की को शादी के बाद अपनी संपत्ति में बराबर का
हक देना चाहेगा? अगर भविष्य
में किन्हीं वजहों से दोनों के बीच तलाक होता है तो क्या उसका मन सहज ही अपनी गाढ़ी
कमाई का आधा हिस्सा देने को तैयार होगा? पुरुष में अनकहा अहम
छुपा रहता है इसलिए वह इस फैसले को आसानी से स्वीकार नहीं कर सकता।
आयोग की सिफारिश के अनुसार
राइट टू मैरिटल प्रॉपर्टी एक्ट के तहत हर समुदाय को लाने की बात कही गयी है। हर समुदाय
को इस कानून के तहत लाना एक कड़ी चुनौती होगी क्योंकि हर समुदाय और धर्म के अपने -अपने
नियम कायदे हैं। भारत में मुस्लिम समाज के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ है, इसके अलावा हिंदू
मैरिज एक्ट है। पुरुष और महिलाओं में प्रॉपर्टी के बंटवारे संबंधित अपने अपने नियम
हैं। अलग-अलग समुदाय इस प्रस्तावित कानून को कितना स्वीकार कर पाएंगे कहना मुश्किल
है?
इसके साथ ही लिव इन रिलेशनशिप
में रहने वालों पर भी यह कानून लागू करने की भी सिफारिश योजना आयोग के पैनल की ओर से
की गयी है। पैनल के सुझाव के मुताबिक पति-पत्नी की तरह रह रहे स्त्री-पुरुष को भी प्रस्तावित
कानून के दायरे में लाना चाहिए। जबकि समाज लिव इन रिलेशनशिप को स्वीकार नहीं करता।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने दो वयस्कों के इस रिश्ते को जायज ठहराया है लेकिन कानूनी
मान्यता मिलने के बाद भी समाज इसे अनैतिक और गलत मानता है।
बहरहाल इसमें शक नहीं है कि
इस सुझाव ने महिलाओं से जुड़ी एक बड़ी समस्या पर ध्यान खींचा है। महिलाओं को आर्थिक
रुप से सशक्त करने की दिशा में यह सुझाव काफी असरदार साबित हो सकता है। योजना आयोग
की सिफारिश लागू होने पर, शादी होते ही पति-पत्नी की संपत्ति ज्वाइंट हो जाएगी। प्रॉपर्टी
से जुड़े मामलों के निर्णय दोनों पर निर्भर होंगे। प्रॉपर्टी बेचने जैसा फैसला किसी
एक के अधिकार में नहीं रहेगा, इसके लिए दूसरे साथी की सहमति आवश्यक होगी। इस कानून
को अमलीजामा पहनाने से महिलाओं की आत्मस्वाभिमान से जीने की आजादी होगी, उनकी ताकत
बढ़ेगी। आर्थिक समपन्नता महिलाओं को उनके अधिकारों के साथ मजबूती प्रदान करेगी।
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